PETA-इंडिया और हमारे अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों ने वर्ष 2013, 2015 और 2017 में ऑस्ट्रेलिया में ऊन के लिए पाले जाने वाली भेड़ों के फार्म पर जांच कर वहाँ भेड़ों के साथ हो रही भयानक क्रूरता का पर्दाफाश किया था। इससे पहले हमने वर्ष 2017 में अमेरिका में भेड़ों के साथ होने वाली बर्बरता, वर्ष 2015 में अर्जेंटीना में और 2016 में चिली में दो कष्ट भोग रही भेड़ों का खुलासा किया है। इसके अलावा PETA एशिया ने 2018 में यूके में भी उसी क्रूरता को उजागर किया है। इन चार वर्षों में हमने चार महाद्वीपों के दर्जनों फार्मों पर जांच कर संसार भर के ऊन उद्योग में भेड़ों पर होने वाली जानलेवा क्रूरता को उजागर किया है।

इन सबके बाद, अगर आप फिर भी आपको यह लगता है कि ऊन उद्योग में श्रमिक भेड़ों के साथ अच्छा व्यवहार करते होंगे और उन्हें चोट न पहुँचाकर मानवीय तरीकों से उनकी ऊन कतरन करते होंगे तो फिर आप गलत सोच रहे हैं।

साल 2018 में, एक चश्मदीद ने विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया, दुनिया के शीर्ष ऊन निर्यातकों को एवं फार्म मैनेजर व श्रमिकों को एक ही तरह के तौर-तरीकों से डरी हुई भेड़ों पर अत्याचार करते हुए देखा है। इससे फिर दोबारा यह साबित होता है कि ऊन निर्माण में दया और रहम नाम की कोई चीज नहीं होती है।

ऐसे ही ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में एक चश्मदीद ने श्रमिकों को तेज धातु से बनी कैंचियों से कोमल भयभीत भेड़ों के मुंह पर वार करते देखा था।

आपके ऊनी स्वेटर और कंबल के लिए दुर्पयोग की जाने वाली भेड़ों का हाल देखिए और जानिए कि ऊन के उत्पादन हेतु इन मासूम भेड़ों के साथ किस प्रकार की दरिंदगी होती है।

ऊन पहनना बंद करने के लिए आप और क्या देखना चाहते हैं?

भेड़ कोमल जीव हैं, जो सभी जानवरों की तरह, दर्द, भय और अकेलेपन को महसूस करती हैं। मगर उनकी ऊन और खाल बाजार में बेची जाती है ऊन उद्योग में उनको प्राणी नहीं बल्कि ऊन देने वाली मशीन की तरह समझा जाता है।

उदाहरण के तौर पर, श्रमिक भेड़ों के अंडकोश के चारों छल्ला कस देते हैं जो कि बेहद दर्दनाक होते है। बिना बेहोशी का टीका लगाए ऐसा इसलिए किया जाता है की ताकि उनके अंडकोष सिकुड़कर कुछ हफ्तों बाद गिर जाएं। जब अंडकोष जल्द ही नहीं गिरते हैं, तो ऊन कतरन करने वाले उन्हें बेदर्दी से कैंचियों से काट देते हैं।

बेहोशी का टीका लगाए बिना ही श्रमिक भेड़ों के कानों में छेद कर देते हैं और गर्म चाकू से उनकी पूंछ काटकर जला देते हैं, जिसके कारण उनके मांस में लगी आग में झुलसने से वे तड़पने लगते हैं।

एक पूर्व विक्टोरियन सरकार के चिकित्सक के अनुसार, “पूंछ कांटना….. एक अत्यंत दर्दनाक प्रक्रिया है जिसके दौरान इन भेड़ों को अपनी रीढ़ की हड्डी, त्वचा, और नरम टीशू को काटने जितना दर्द महसूस होता है।”

वैश्विक ऊन उद्योग में यह दर्दनाक तरीके से अंग काटना समान रूप से प्रचलित प्रथा है।

और इन सब के अलावा, 8 सप्ताह की आयु से पहले कई मेमने भुखमरी से या आवश्यक पोषक तत्वों की कमी के कारण मर जाते हैं।

भेड़ों की पीठ से मांस काटने के कारण वे तड़पती हुई दर्द में कहारने लगती हैं

अत्यधिक मात्रा में ऊन प्राप्त करने के लिए श्रमिक ऊन कतरन के दौरान भेड़ों के शरीर से उनका मांस तक काट देते हैं जिन पर जख्म बन जाने से मक्खियाँ भर जाती है। बाद मेंइन जख्मों को ठीक करने के लिए एक और दर्दभरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसे ‘म्यूस्लिंग’ कहा जाता है।

भेड़ें शांत स्वभाव की होती हैं, जो आमतौर पर ध्यान आकर्षित करने और आगे किसी मुसीबत में पड़ने के बजाय चुपचाप दुख झेलती हैं, लेकिन इन जानवरों के साथ इतनी बुरी तरह से व्यवहार किया जाता है की वह अपनी पीड़ा एवं दर्द के लिए रोती बिलखती हैं।

भेड़ों की तवाचा पर बने जख्मों पर मक्खियाँ न भर जाए व अंडे न दे दें इसलिए उन जगहों को साफ किया जाता है और इस दर्दनाक प्रक्रिया को म्यूस्लिंग कहते हैं। लेकिन खुले खूनी घाव अक्सर कीड़ों से संक्रमित हो जाते हैं, जिससे कई जख्मी भेड़ें लंबे समय तक असहनीय दर्द से पीड़ित रहती हैं और तड़पकर दम तोड़ देती हैं।

जब PETA-यूएस ने पहली बार इस भीषण प्रक्रिया का पर्दाफाश किया, तो इससे दुनियाभर में आक्रोश फैल गया। न्यूजीलैंड में म्यूस्लिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, और ऑस्ट्रेलियाई ऊन उद्योग के अधिकारियों ने 2010 तक इसे खत्म करने का वादा किया था।

लेकिन आठ साल के बाद भी ऑस्ट्रेलिया में अधिकांश भेड़ों के साथ आज भी वही व्यवहार हो रहा है।

अपने बच्चों की खाल कटते देख, भेड़ें पीड़ा में पागलों की तरह कहारने लगती हैं

इन सभी क्रूर प्रक्रियाओं को अपनी आखों के सामने अपने बच्चों के साथ होते देख, भेड़ें पागलों की तरह रोती चिल्लाती हैं वा उनके करीब आने का प्रायस करती हैं।

श्रमिकों ने खून से लथपथ मेमनों को जमीन पर पटक दिया जहा वो अपने खूनी घावों को लेकर तड़फते रहे।

वे झुंड के बीच अपनी मां को तलाश कर रोते बिलखते रहते हैं।

जो भेड़ें ऊन देने लायक नहीं रहती उनकी दर्दनाक मौत

मैनेजर ने जीवित भेड़ का चाकू से गला काट दिया और फिर उसकी गर्दन तोड़ दी।

मैनेजर द्वारा गला काटने के बाद भी एक भेड़ लगभग एक मिनट तक पैर मारती रही। जिसपर मैनेजर ने कहा, “ये लातें कुछ देर तक ही चला पाओगी।”

फुटेज की समीक्षा करने वाले एक डॉक्टर के अनुसार, यह भेड़ लगभग एक मिनट तक गंभीर पीड़ा और दर्द में कहारती रही, जबकि उस पीड़ा के दौरान मैनेजर उसके सिर और गर्दन को घुमाता रहा और उसका गला काटता रहा।

पास खड़ी भेड़ें और मेमने यह सब आंखो के सामने होते हुए देखते रहते हैं।

इतना ही नहीं, जो भेड़ें कई वर्षों तक इस प्रकार की बर्बरता सहने की बाद भी जीवित बच जाती हैं वह आन्टा में एक भयानक मौत का सामना करती हैं। हर साल, लाखों अनचाही ऑस्ट्रेलियाई भेड़ों को बेहद भीड़-भाड़ वाले बहुमंजिला मालवाहक जहाजों में क्रूरता से लादकर मध्य पूर्व या उत्तरी अफ्रीका भेजा जाता है, जहाँ अक्सर जीवित भेड़ों के ही गले काट दिए जाते हैं।

चेहरे पर चोट मारना और बुरी तरह काटना

न्यू साउथ वेल्स में, एक चश्मदीद ने देखा कि श्रमिक बार-बार भेड़ों के मुंह पर तेज धार वाली कैंचियों और पेट में अपने घुटनों से प्रहार कर रहे थे।

श्रमिकों को कतरी गयी ऊन के हिसाब से भुगतान किया जाता है इसलिए वह श्रमिक बहुत तेज गति से ऊन कतरन का कम करते हैं। उन कतरन के दौरान भेड़ों की खाल भी काट दी जाती है जिसे बाद में बिना किसी बेहोशी की दावा दिये सुई धागे से सील दिया जाता है।

ऊन कतरन के दौरान भेड़ों की त्वचा के कई हिस्सों तक को काट दिया।

एक श्रमिक ने एक भेड़ को बेहोशी का टीका लगाए बिना ही उसके अंडकोश के चारों ओर एक छल्ला डाल दिया, जोकि बेहद दर्दनाक था। ऐसा इसलिए किया ताकि उसके अंडकोष सिकुड़कर कुछ हफ्तों बाद गिर जाएं। जब अन्य जानवरों के अंडकोष उम्मीद के मुताबिक नहीं गिरते हैं, तो श्रमिक उन्हें अपनी कैंचियों से काट देते हैं। इस प्रक्रिया में भी कोई दर्द से राहत देने वाली दवा या टीका नहीं दिया जाता।

इसे रोकने के लिए मदद करें!

अपने कपड़ों की अलमारी में देखिए? क्या आप अभी भी ऊनी कपड़े पहन रहे हैं तो अब समय है की आप कृपया ऊन पहनना बंद कर दें। ऊन से बनी कोई भी वस्तु खरीदना बंद कर इन कोमल जानवरों की पीड़ा से निजात दिलवाना अब आपके ऊपर है। कृपया, आज ही ऊन पहनना छोड़ भेड़ों को यह खास तोहफा दें, जिसके लिए वे आपके आभारी रहेंगे।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ऊन कहां से आती है या कंपनियां आपको क्या झूठे आश्वासन देती हैं। ऊन भेड़ों पर क्रूरता कर बनने वाला एक उत्पाद है, जो इस सारे उद्योग में व्याप्त है।

कृपया, ऊन को प्रतिबंधित करने के लिए फॉरएवर 21 से आग्रह करें।

दोबारा पर्दाफाश: आस्ट्रेलिया में ऊन की खातिर भेड़ों के साथ क्रूरता, रोते हुए मेमनों का मांस और पूंछ काटकर उन्हें जला दिया गया।​

बोल्ड लैटर में लिखे स्थानों को भरना अनिवार्य है।
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